निकाल दिया उसने हमें अपनी ज़िन्दगी
से भीगे कागज़ की तरह,
ना लिखने के काबिल छोड़ा,
ना जलने के...!
से भीगे कागज़ की तरह,
ना लिखने के काबिल छोड़ा,
ना जलने के...!
मेरे दिल से उसकी हर गलती माफ़ हो जाती है,
जब वो मुस्कुरा के पूछती है नाराज हो क्या !
जब वो मुस्कुरा के पूछती है नाराज हो क्या !

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